इस्लाम सब से अलग क्यूँ दिखाई देता है?
क्या इस्लाम और ईसाइयत की शुरुआत अलग अलग है?
मोहम्मद स केसे पेगंबर और रसूल हुए?
इस्लाम के फेलाओ ने दुनिया पर क्या असर डाला?
इसके अलावा कोई और मकसद ज़राए हैं?
इस्लाम के पाँच स्तंभ क्या हैं?
इस्लाम का दूसरे धर्मों के साथ केसा व्यवहार है?
ईसा मुसलामनों की नज़र मैं क्या हैं?
मुसलमानों के लिए परिवार इतना ज़रूरी क्यों है?
मुस्लिम महिलाओं के बारे में क्या है?
क्या एक मुस्लिम एक से अधिक पत्नी हो सकती हैं?
क्या इस्लामी शादी ईसाई शादी की तरह होती है?
मुसलमान बुजुर्गों के साथ किस तरह का व्यवहार रखते हैं?
मुसलमान मौत को कैसे देखते हैं?
युध के बारे मैं इस्लाम क्या कहता है?
कैसे इस्लाम मानव अधिकारों की गारंटी है?
इस्लाम क्या है?
इस्लाम कोई नया मज़हब नही है बलके ये हक़ीकत खुदा ने अपने रासूलों के ज़रिए ये तमाम इंसानों तक पहुँचाई| दुनिया की आबादी का पाँचवाँ हिस्सा जिनका मज़हब और ज़िंदगी का हर रास्ता इस्लाम है| मुसलमान शांति, दया और क्षमा के मज़हब के पेरवी करते हैं और इनकी अक्सरियत अपने इंतिहाई तकलीफ़ दे मौकों पर सब्र से काम लेती है| जोकि इनके ईमान के साथ जुड़े हैं|
मुसलमान कौन हैं?
पूरी दुनिया के अलग रंगो नस्ल, कौमों और संस्कृतियों से वाकिफ़ एक बिलियन लोग दक्षिणी फिलीपींस से लेकर नाइजीरिया तक – तमाम अपने ईमान ए इस्लामी पर क़ायम हैं| तकरीबन १८% मुसलमान अरब दुनिया मैं, दुनिया की सब से बढ़ी मुस्लिम आबादी इंडोनेषिया मे, एशिया के काफ़ी हिस्सों और अक्सर आफ्रिका मैं बस्ते हैं, जबकि महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक मैं रूस, चीन, उत्तर और दक्षिण अमेरिका और युरोप मैं आबाद हैं|
मुसलमानों का ईमान क्या है?
मसलमानों का ईमान है के ईमान है के खुदा एक है, अकेला है और उस जेसा कोई नही| फरिश्तों को उसने बनाया, पेगंबरों पर ईमान जिन्होने वाणी के दुआरा वैसे के वैसा इंसानो तक पहुँचाया, रोज़ ए क़यामत पर और हर एक से उस के अमाल के बारे मैं सवाल जवाब पर, खुदा का पूरा इख्तियार इंसान के भाग्य पर ईमान और मरने के बाद की ज़िंदगी पर ईमान| मुसलमान पेगंबरों के सिलसिले पर यकीन रखते हैं जो के हज़रत आदम से शुरू हुआ जिसमे नूः, इब्राहिम, इस्माईल, इशाक़, याक़ूब, युसुफ, मूसा, हारून, दाऊद, सुलेमान, इलियास, यूनुस, यहया और ईसा अले सलाम लेकिन खुदा का आखरी पेगाम इंसान के लिए ताज़दीक करता है शाश्वत संदेश की, मजमुआः है तमाम पिछले पैगामओं का जो रसूलअल्लाह स के पास जिबराईल के वाणी लाने से पहले गुज़र चुके थे|
कोई केसे मुसलमान हो सकता है?
सिर्फ़ कहने से “खुदा के सिवा कोई इबादत नही और मोहम्मद स खुदा के पेगंबर हैं|”
इस इकरार से मुसलमान खुदा के तमाम अंबिया कराम और उनकी लाई हुई किताबों पर ईमान का एलान करता है या करती है|
इस्लाम का क्या मतलब है?
अरबी शब्द इस्लाम का अर्थ है “फ़र्माबरदारी करना” और ये शब्द “अमन” से लिया गया है| मज़हबी नज़रिए से इस का मतलब है खुदा की पूरी फ़र्माबरदारी| “मोहम्मडन” ग़लत इस्तीमाल किया जाता है क्यूंके ये ज़ाहिर करता है के मुसलमान खुदा के बजाए मोहम्मद स की इबादत करते हैं| “अल्लाह” खुदा का अरबी नाम है जिस को अरब के मुसलमान और ईसाई दोनो इस्तीमल करते हैं|
इस्लाम सब से अलग क्यूँ दिखाई देता है?
आज की इस आधुनिक दुनिया मैं इस्लाम अजीब या यूँ कहें अतिवादी दिखाई देता है| शायद आएसा है क्यूंके आज पच्छिम की रोज़ाना की ज़िंदगी मैं मज़हब का कोई अमल दखल नही है जबके मुसलमानो मैं मज़हब को तरजीह दे जाती है और उन मैं बे दीन या दीन ए मुक़द्दीस होने मैं क ोई फ़र्क़ नही| उन का ईमान है के ख़ुदाई क़ानून यानी शरीयत लाज़मी लागू होनी चाहये क्यूंके अभी भी मज़हब से मुताल्लिक़ मूल आहेमियत रखते हैं|
क्या इस्लाम और ईसाइयत की शुरुआत अलग अलग है?
नही- दोनो यहूदियत से हैं, उन्होने अपने पेगंबरों की पेरवी की और उन के दादा इब्राहिम अल्एसलाम और उनके तीन पेगंबर पीढ़ी दर पीढ़ी उन की औलाद मैं से हैं, मोहम्मद स उन के बढ़े बेटे इस्माईल अल्एसलाम की औलादो मे से जब के मूसा अल्एसलाम और ईसा अल्एसलाम हज़रत इसहाक़ अल्एसलाम की औलादों मे से थे| इब्राहीम ने जो जगह आबाद की वो आज शहर मक्का है और वहीं उन्होने खाने काबा की तामीर शुरू की जिसकी तरफ मूह करके मुसलमान नमाज़ पढ़ते हैं|
काबा क्या है?
काबा इबादत की जगह है जिस की तामीर का हुक्म खुदा ने ४००० साल पहले हज़रत इब्राहिम और हज़रत इस्माईल अल्एसलाम को दिया था| इस इमारत की तामीर पत्थरों से की गयी है और बहुत से लोगों को यकीन है के ये हकीकी मुक़द्दीस जगह हज़रत आदम अल्एसलाम ने कायम की थी| खुदा ने हज़रत इब्राहिम अल्एसलाम को हुक्म, दिया था के तमाम इंसानो को इस जगह पर आने के लिए बुलाओ और इस के जवाब मैं आज जब हाजी लोग वहाँ जाते हैं तो कहते हैं “ए खुदा हम तेरी बारगाह मैं हाज़िर हैं|”
मोहम्मद स कौन हैं?
मोहम्मद स मक्का मैं स: ५७०ई मैं पैदा हुए थे| उस वक़्त ईसाइयत युरोप मैं पूरी तरह पर नही फेली थी| उनकी पैदाइश से पहले उनके पिता का देहांत हो चुका था, और उसके बाद जल्द ही उनकी माँ का देहांत होगया| उनका पालन पोषण उनके चाचा ने किया| आपका ताल्लुक अरब के इज़्ज़तदार कबीले क़ुरैश से था| जेसे हे वो बढ़े हुए, तो वो अपनी सत्यवादिता, उदारता और ईमानदारी से पहचाने जाने लगे लिहाज़े विवादों में मध्यस्थता करने की क्षमता की वजह से वो जाने जाते थे| इतिहासकार आप सलल्लाहू अलेहे वस्सलम के बारे मैं कहते हैं के आप पर सुकून और गौर ओ फ़िक्र मैं व्यस्त रहते थे| मोहम्मद स इंतिहाई मज़हबी थे और अपने समाज की बुरायों के सख़्त खिलाफ थे| ये उनका काम था के वो अक्सर गार ए हिरा मैं गौर ओ फ़िक्र किया करते थे जो के जबल अल-नूर के पास स्थित है|
मोहम्मद स केसे पेगंबर और रसूल हुए?
४० साल की उम्र मैं जब वो गौर ओ फ़िक्र मैं व्यस्त थे तो खुदा की तरफ से पहली वाणी मोहम्मद स के पास हज़रत जिबराईल लेकर आए| और फिर उस वाणी का सिलसिला २३ सालों तक जारी रहा जो क़ुरान कहलाती है|
जेसे वो जिबराईल से सुनते, उन शब्दों को दोहराते और सच्चाई की तबलीग़ करते जो के खुदा ने उनपर वाणी भेजी थी जिसपर उन्होने और उनके पेरोकार छोटे से समूह ने सख़्त तकलीफो का सामना किया| जब ज़ुल्म ज़ादा बढ़ गया तो ६२२ई मैं खुदा ने उनको हिजरत का हुक्म दिया| इस वाक़ये को “हिजराह” यानी हिजरत कहते हैं| इस मे वो मक्के को छोड़कर शहर मदीना रवाना हुए जो के २६० मील उत्तर मैं स्थित है| इसी वाकये से मुसलमानो का कॅलंडर शुरू होता है|
बहुत सालों बाद रसूल स और उनके पेरोकार मक्के जाने के क़ाबिल हुए, जहाँ पर आप ने अपने तमाम दुश्मनो को माफ़ फरमाया और आख़िरकार इस्लाम को क़ायम कर दिया| हज़रत मोहम्मद स की वफात ६३साल की उम्र मैं हुई, इस ज़ पहले ही अरब का बहुत बढ़ा हिस्सा म ुसलमान था और उनकी वफात के बाद एक सदी के अंदर ही इस्लाम पच्छिम मैं स्पेन तक और पूरब मैं चीन तक फेल गया था|
इस्लाम के फेलाओ ने दुनिया पर क्या असर डाला?
इस्लाम के तेज़ी और अमन के साथ फेलाओ ने बहुत से मसलों मैं उसकी सादा तालीम है| इस्लाम कहता है के सिर्फ़ एक खुदा पर इम्मान लाओ और वही इबादत के लायक़ है| ये इंसान को बार बार हिदायत करता है के वो अपने बुद्धि और प्रेक्षण को इस्तीमाल करे|
कुछ ही सालों मैं बढ़ी तहज़ीबे और यूनिवर्सिटी बनने लगी थीं| रसूल अल्लाह स के फरमान के मुताबिक इल्म का हासिल करना हर मुसलमान मर्द और औरत पर लाज़िम है| पूरब से पच्छिम के ख्यालात का संश्लेषण और नयी सोच ने पुरानी सोच के साथ मिलकर ज्ञान के विभिन मैदानों मैं जिस मे चिकित्सा, गणित, भौतिक, खगोल, भूगोल, वास्तुकला, कला, साहित्य और इतिहास मैं बे पनाह तरक्की की| बहुत से आहेम निज़ाम जेसे बीजगणित अरबी अंक, और (गणित की उन्नति के लिए महत्वपूर्ण) शून्य की अवधारणा मध्ययुगीन यूरोप में इस्लाम से संचरित थे| इस से युरोप ने बाहरी सफ़र के लिए परिष्कृत उपकरण बनाए जिसने नये इलाक़ों की खोज को मुमकिन बनाया, इन मैं शामिल सितारों की ऊँचाई मापने का उपकरण, वृत्त का चतुर्थ भाग और अच्छे नेविगेशनल नक्शे।
क़ुरान क्या है?
क़ुरान एक रेकॉर्ड है अल्लाह ताआला के उन शब्दो का जो उस ने हज़रत जिबरील अल्एसलाम के दुआरा वाणी के तौर पर भेजे| जो के मोहम्मद स ने याद करली थी और फिर अपने साथियों को लिखवाते थे और बोलते जाते और लिखवाते जाते और अपनी ज़िंदगी मैं इसे चेक भी करते रहते| क़ुरान के ११४ पाठ यानी सूरते हैं| इन मैं एक भी शब्द सदियों गुज़रने के बावजूद बदल ना सका, लिहाज़ा क़ुरान हर लिहाज़ से अद्वितीय और चमत्कारी ग्रंथ है जो को मोहम्मद स पर १४०० साल पहले वाणी की शक्ल मैं ज़ाहिर हुआ|
क़ुरान किस बारे मैं है?
क़ुरान खुदा के वाणी किए गये शब्द हैं| जो के हर मुसलमान के यकीन और अमल का बड़ा ज़रिया है| ये सारे इंसानो से मुतअल्लिक तमाम विषयों पर बहेस करता है जिन मैं हिकमत, इबादत, तालीमत और क़ानून शामिल हैं लेकिन इसका बुनियादी मकसद खुदा और उसकी मखलूक के दरमियाँ ताल्लुक है| इस के साथ ये समुदाय और समुदाई व्यवहरों, उचित मानव आचरण और एक न्यायोचित आर्थिक प्रणाली के बारे मैं दिशा-निर्देश प्रदान करता है
इसके अलावा कोई और मकसद ज़राए हैं?
जी हाँ, रसूल अल्लाह स की सुन्नत और उनका अमल मुसलमानो के दूसरे प्राधिकरित ज़रिए हैं| हदीस एक दूसरे प्राधिकार से पहुँचने वाली रसूल अल्लाह स के फरमान, अमल, या जायज़ दिए गये कामों की जानकारी है| सुन्नत पर यकीन इस्लाम पर ईमान का हिस्सा है|
नबी की कहावत ोंके उदाहरण
नबी ने कहा:
‘इर्वर उन िर दया नही ोंकरता ज दूसर ोंिर दया नही ोंकरते|’
‘तुम में से क ई भी ईमान वाला नही ोंजब तक व अिने भाई के बलए वही िसोंद नही ोंकरता ज वह खुद के बलए करता ह |’
‘वह ईमान वाला नही ोंज िेट भर कर खाए जब के उस का िड़ सी भूका रहे|’
‘सच्चा और भर सेमोंद व्यािारी नबी, सोंत ोंऔर र्हीद ोंके सार् जुड़ा हुआ है|’
‘ताकतवर व नही ोंज दुसरे क िछाड़ दे, बलके ताकतवर त वह है ज र्ुस्से में अिने आि आि िर बनयोंत्रण कर ले|’
‘इर्वर तुम्हारी र्कल ोंऔर बदखावे के अनुसार बनयायाबिर् नही ोंकरता, बलके वह तुम्हारे कमों क देखता है और तुम्हारे बदल क | ’
‘एक व्यस्जि क रास्ते में बहुत प्यास लर्ी| वह एक कूएों के िास िहुोंच के उस में उतर र्या, िेट भर िानी बिया और बनकल आया| तभी उसे एक कुत्ता बदखा बजसकी ज़बान बहार लटकी र्ी ज र्ीली मट्टी क चाट कर अिनी प्यास बुझाने की क बर्र् कर रहा र्ा| उस आदमी क एहसास हुआ के उस कुत्ते क भी र्ायद उतनी ही प्यास लर्ी है बजतनी उसे लर्ी र्ी| त वह द बारा कुएों में र्या अिने जूते में िानी भर कर लाया और कुत्ते क बिलाया| उसकी इस बात िर इर्वर ने उसके सारे िाि माफ़ कर बदए|’ नबी से िुछा र्या; ‘ऐ इर्वर के नबी, क्या हमें जानवर ोंके प्रबत दयालुता से भी इनाम बमलता है?’ उन् नोंे कहा,‘हर जीबवत वस्तु के प्रबत दयालुता से इनाम बमलता है|’
बुखारी, मुस्जस्लम, बतरबमज़ी और बय्हाकी की हदीस ोंसे जुटाई र्ई हदीस|
इस्लाम के पाँच स्तंभ क्या हैं?
ये मुसलमान की ज़िंदगी का ढाँचा है: नमाज़, रोज़ा, ज़कात और मक्के का हज जो करने में सक्षम हों|
१- तोहीद
“खुदा के सिवा कोई इबादत के लायक़ नही और मोहम्मद स उसके पेगंबर हैं|”
ईमान के ये एलान शहादत कहलाता है, एक सादा फ़ॉर्मूला जिसे हर मुसलमान अदा करता है| अरबी मैं पहला हिस्सा है: ” ” कोई माबूद नही सिवाए खुदा के| इलहा (माबूद) हवाला इस चीज़ के लिए है जिसे खुदा की जगह पर माना जाए| दौलत, ताक़त और इस जेसी कोई चीज़| फिर है ” ” सिवाए खुदा, तमाम मखलूक का ज़रिया| शहादत का दूसरा हिस्सा ” ” मोहम्मद के रसूल हैं| एक हमारी ही तरह के इंसान के ज़रिए रहनूमाई का पेगाम हमे पहुँचा| कलमा शहादत सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें|
२- नमाज़
सलाह यानी नमाज़ फ़र्ज़ इबादत का नाम है जिसको दिन मैं 5 बार अदा करना होता है और ये बंदे और खुदा के बीच सीधा ताल्लुक क़ायम करती है| इस्लाम में कोई पदानुक्रमिक प्राधिकार नही जिसका हुक्म माना जाए, ना ही कोई पाद्री है| कोई भी शक्स जो क़ुरान जानता हो या जिसे जमात ने चुना हो इबादत मैं रहनूमाई कर सकता है| ये 5 नमाज़ों मैं क़ुरानी आयतें पढ़ी जाती हैं और अरबी मैं कही जाती हैं जो के वाणी की ज़ुबान है लेकिन हर एक शक्स दुआ अपनी ज़ुबान मैं कर सकता है|
नमाज़ सुबह सवेरे, दोपेहेर, शाम, सूर्यास्त के समेय और रात हो जाने के बाद और इस प्रकार पूरे दिन की लय निर्धारित है| ये बेहतर है के इबादत मिल जुल कर मस्जिद मैं अदा की जाए| एक मुसलमान नमाज़ कहीं भी अदा कर सकता है जेसे के खेतों, दफ़्तरों, फॅक्टरी, यूनिवर्सिटी मैं अदा कर सकता है| जो लोग मुसलमान देशों मैं जाते हैं रोज़ाना ज़िंदगी मैं नमाज़ के वक़्त पर रुक जाते हैं|
नमाज़ के पढ़ने के लिए दी जाने वाली अज़ान का मतलब है:
अल्लाह सबसे बढ़ा है – अल्लाह सबसे बढ़ा है
अल्लाह सबसे बढ़ा है – अल्लाह सबसे बढ़ा है
मैं गवाही देता हूँ के खुदा के सिवा कोई इबादत के लायक़ नही-
मैं गवाही देता हूँ के खुदा के सिवा कोई इबादत के लायक़ नही-
मैं गवाही देता हूँ के मोहम्मद स अल्लाह के रसूल हैं-
मैं गवाही देता हूँ के मोहम्मद स अल्लाह के रसूल हैं-
आओ नमाज़ के लिए! आओ नमाज़ के लिए!
आओ फ़लाह के लिए! आओ फ़लाह के लिए! (इस ज़िंदगी और इसके बाद की फ़लाह)
अल्लाह सबसे बढ़ा है – अल्लाह सबसे बढ़ा है
खुदा के सिवा कोई इबादत के लायक़ नही|
३- ज़कात
इस्लाम का एक सबसे ज़रूरी उसूल ये हे के तमाम चीज़ों का ताल्लुक खुदा से है जब सारे इंसान दौलत पर यकीन करते हुए उसे रखते हैं| शब्द ज़कात के दो मतलब हैं यानी “शूध करना” और “बढ़ाना”| अपने माल मैं से एक हिस्सा ज़रूरतमंद लोगों के लिए अलग करने से आपका माल पाक हो जाता है जिस तरह पोधे की कटाई सफाई की जाती है| ये निकाला गया माल विकास को प्रोत्साहित करता है|
हर मुसलमान अपनी ज़कात का हिसाब खुद करता है| ज़ादतर इस मकसद के लिए साल मैं कुल माल का 2.5% अदा करते हैं|
एक परहेज़गार शक्स जितना चाहे अपनी खुशी से सदका अदा कर सकता है और अगर इसको खूफिया रखा जाए तो बेहतर है| यानी इस शब्द का अर्थ है “मर्ज़ी से सदका” लेकिन इसके गहरे अर्थ हैं| रसूल अल्लाह स ने फरमाया “अगर आप अपने भाई से मुस्कुरा के मिलें तो ये भी सदका है|”
रसूल अल्लाह स ने फरमाया:
“सदका हर मुसलमान पर ज़रूरी है|” उनसे पूछा गया: अगर किसी शक्स के पास कुछ ना हो तो? रसूल अल्लाह स ने फरमाया: “उसको चाहये के वो अपने हाथों से अपने फाएेदे के लिए काम करे और फिर अपनी कमाई मैं से कुछ खेरात कर दिया करे|” सहाबा करम ने पूछा: “अगर वो काम करने के क़ाबिल ना हो तो?” रसूल अल्लाह स ने फरमाया: “उसको चाहये के वो ग़रीब और ज़रूरतमंद लोगों की मदद करे|” सहाबा कराम ने और पूछा: “क्या होगा अगर वो ये भी ना कर सके तो?” रसूल अल्लाह स ने फरमाया: “तो उसको चाहये के वो लोगों को भलाई करने को कहे|” सहबा कराम ने कहा के “अगर वो उससे भी रह जाए तो?” रसूल अल्लाह स ने फरमाया के: “उसको चाहये के जो उसने बुरे काम किए हैं उन पर उसे गौर करना चाहये, ये भी सदका है|”
4- रोज़ा
हर साल रमज़ान के महीने मैं हर मुसलमान रोज़े मैं सुबह की पहली किरण से सूर्यास्त होने तक खाने पीने और जिन्सी ताल्लुक़ात से बचता है| वो जो बीमार हो, बूढ़ा हो या सफ़र मैं हो और गर्भवती महिलाएँ या दूध पिलाने वाली महिलाओं को इजाज़त है वो उस वक़्त रोज़ा ना रखें और बाद मैं अपने छूटे हुए रोज़ो की गिनती साल के अंदर पूरी करें| अगर वो आएसा करने की ताक़त ना रखता हो जीतने रोज़े उनसे रह गये हैं उतने ही ज़रूरतमंद लोगों को खाना खिलाए| बच्चों पर उनके योवन से रोज़ा और नमाज़ की पाबंदी लाज़मी हो जाती है, जब के बहुत से पहले से ही रोज़ा रखना शुरू कर देते हैं| रोज़ा सेहत के लिए फयदेमंद है, ये उसूली तौर पर समझा जाता है के ये अमल आपको पाक करता है| इस मे इंसान थोड़े समय के लिए अपने सांसारिक सुख त्याग देता है| रोज़दार जब भूका रहता है तो उसके दिल मैं सच्ची हमदर्दी बढ़ जाती है इसके साथ इस मे अध्यात्म को फायेदा मिलता है|
5- हज
मक्के मैं हर साल हज अदा किया जाता है जो के सिर्फ़ उसपर फ़र्ज़ है जो शारीरिक और आर्थिक रूप से हज की क्षमता रखता हो| जब के हर साल 2 करोड़ लोग दुनिया के कोने से मक्का आते हैं| ये एक मौका होता है विभिं कौमों के लोगों को एक दूसरे से मेलजोल का| बावजूद इसके मक्का मोज़मा हमेशा आने वालों से भरा रहता है| हर साल हज इस्लामी साल के लिहाज़ से 12वें महीने मैं शुरू होता है (चाँद के हिसाब से नाके सौर कॅलंडर से, यही वजह के कभी हज और रमज़ान गर्मियों मैं कभी सर्दियों मैं आते हैं)|
हज के खास कपड़े: साधारण कपड़े जो के वर्ग और संस्कृति के फ़र्क को ख़तम कर देता है और सब अल्लाह के सामने एक जेसे खड़े होते हैं|
हज का तरीका जो के हज़रत इब्राहिम ने किया जिसमे 7 मर्तबा काबा का तवाफ़ शामिल है, 7 बार सफ़ा मरवा की पहाड़ीयूं पर दौड़ना जेसे हज़रत बीबी हाजरा ने पानी की तलाश मैं किया था| फिर हाजी कराम अराफ़ात के मैदान मैं इकहट्टा हो कर नमाज़ अदा करते हैं और खड़ा से अपने गुनाहों की माफी माँगते हैं| अक्सर के दिमाग़ मैं निर्णायक दिन का ख्याल होता है| पहले ज़माने मैं हज को करना मुश्किल था| बहराल आजकल सऊदी अरब ने करोड़ों लोगों को पानी के ज़रूरी स्त्रोत और बहुत से ज़रूरी आधुनिक परिवहन और स्वास्थ सुविधाएं प्रदान की हैं| ईद उज़ ज़ुहा के दिन हज ख़तम हो ज ाता है जिसको नमाज़ पढ़कर मनाया जाता है और मुसलमान बिराद्रि हर जगह एक दूसरे को तोहफे लेते और देते हैं| ये और रमज़ान के ख़तम होने पर खुशी का दिन यानी ईद उल फित्र मुसलमानो के कॅलंडर के ख़ास त्युहार हैं|
इस्लाम का दूसरे धर्मों के साथ केसा व्यवहार है?
क़ुरान कहता है के:
जिन लोगों ने दीन के बारे मैं जंग नही की और ना तुम्हे घरों से निकाला उनके साथ भलाई और इंसाफ़ का व्यवहार करने से खुदा तुमको माना नही करता|
(क़ुरान 60:8)
ये इस्लामी क़ानून का काम है के वो अल्पसंख्यकों की रक्षा करे और यही वजह है की बढ़ी संख्या मैं गैर मुस्लिम लोगों की इबादत गाहें इस्लामी दुनिया मैं मौजूद हैं| तारीख मैं मुसलमानो की दूसरे धर्मों को बर्दाश्त के बारे मैं बहुत सी मिसालें हैं| 634ई मैं खलीफा उमर र० ने यरूशलेम मैं दाखिल होते ही शहर मैं तमाम मज़हबों को अपनी इबादत करने की इजाज़त दी|
इस्लामी क़ानून गैर मुस्लिम अल्पसंखियक को इजाज़त देता है के वो अपनी अदालतें भी क़ायम कर सकते हैं जिसमे फॅमिली क़ानून अल्पसंखियक खुद लागू कर सकती हैं|
ईसा मुसलामनों की नज़र मैं क्या हैं?
मुसलमान ईसा की इज़ात और अहतराम करते हैं और उनके दोबारा आने का इंतिज़ार कर रहे हैं| वो उनको तमाम इंसानो के लिए खुदा के एक सबसे बढ़े पेगंबर समझते हैं| एक मुसलमान कभी भी उन्हे सिर्फ़ ईसा से नही पुकारता बलके इसके साथ ये शब्द “अल्एसलाम” ज़रूर लगता है| क़ुरान उनका कुँवारी महिला से जने जाने की पुष्टि करता है (क़ुरान के एक पार्ट का विशेय “मरियम” है) और मरियम को सारे सृजन मैं सबसे पाकीज़ा महिला समझते हैं| क़ुरान मैं इस बारे मैं बताया गया है के:
जब फरिश्तों ने मरियम से कहा के मरियम! खुदा ने तुमको चुना है और पाक बनाया है और दुनिया की औरतों मैं ऊँचा किया है| ए मरियम खुदा तुमको अपनी तरफ से एक अच्छी खबर की बधाई देता है जिसका नाम मसीह (और मशहूर) ईसा इबने मरियम होगा और जो दुनिया और आख़िरत मैं सम्मानित और खुदा के ख़ासों मैं से होगा| और माँ की गोद मैं और बढ़ी उम्र का होकर दोनों हालातों मैं लोगों से सच्ची बात करेगा और नेक लोगों मैं होगा| मरियम ने कहा ए खुदा मेरे यहाँ बच्चा क्यूँ होगा जबके मुझे किसी इंसान ने हाथ भी नही लगाया| फरमाया के खुदा इसी तरह जो चाहे पैदा करता है| जब वो कोई काम करना चाहता है तो फरमा देता है के होजा तू, और वो होजाता है|
(क़ुरान 3:42-47)
ईसा अलेसलम माज्जाती तौर पर पैदा हुए उसी कुदरत के ज़रिये जेसे आदम को लाया गया बगैर वालिद के:
ईसा अलेसलाम का हाल खुदा के नज़दीक आदम अलेसलाम का सा है के उस ने (पहले) मिटटी से उनका स्वरूप बनाया फिर फ़रमाया के (इन्सान) हो जा तू वो (इन्सान) हो गए|
(कुरान 3:59)
अपनी रिसालत के दौरान ईसा अलेसलाम ने कई कारनामे किये| कुरान हमें बताता है के:
मैं तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से निशानी ले कर आया हूँ वो ये के तुम्हारे सामने मिटटी की मूरत शकल के साथ बनाता हूँ फिर इस में फूँक मारता हूँ तो वो खुदा के हुक्म से (सच मुच) जानवर हो जाता है और अंधे और कमज़ोर को तंदुरुस्त कर देता हूँ और खुदा के हुक्म से मुर्दे मैं जान डाल देता हूँ|
(क़ुरान 3:49)
न तो मोहम्मद स ने और न ही ईसा अलेसलाम सिर्फ एक खुदा पर यकीन की बुनयादी तालीमात को तब्दील करने ए थे, जो पिछले रसूल लाये थे बलके वो उस की तज्दीक करते और तजदीद करते थे| कुरान मैं ईसा अलेसलाम इस तरह कहते हैं के वो क्यों आये:
और मुझसे पहले जो तौरात (नाजिल हुई) थी उसकी तज्दीक भी करता हूँ और मैं इस लिए भी आया हूँ कुछ चीज़ें जो तुम पर हराम थीं उनका तुम्हारे लिए हलाल कर दूं और मैं तो तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से निशानी लेकर आया हूँ तो खुदा से डरो और मेरा कहा मानो
(क़ुरान 3:5O)
जिसका ईमान है के खुदा के सिवा कोई इबादत के काबिल नहीं, कोई उसका शरीक नहीं, मोहम्मद स उसके रसूल, ईसा अलेसलाम उसके बन्दे और अल्लाह के रसूल हैं, उसने कुछ कलमा मरियम पर डाला और उस की भेजी हुई रूह होने पर, और जन्नत और दोज़ख के होने पर, तो वोह अल्लाह से जन्नत मैं मुलाक़ात करेगा|
(हदीस माखूस बुखारी शरीफ)
मुसलमानों के लिए परिवार इतना ज़रूरी क्यों है?
परिवार इस्लामी माशरे की बुनियाद है| एक स्थिर परिवार मैं शांति और सुरक्षा बहुत मूल्य रखती है, और उसके सदस्यों के आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक समझी जाती है| एक सामंजस्यपूर्ण सामाजिक क्रम विस्तृत परिवारों के अस्तित्व के द्वारा बनाया जाता है; बच्चे कीमती होते हैं और वो शादी से पहले कम ही घर से निकलते हैं|
मुस्लिम महिलाओं के बारे में क्या है?
इस्लाम औरत को एक शक्स की हेसियत से देखता है चाहे वो कुंवारी हो या फिर शादी शुदा जिसके अपने हक है, इस हक के साथ वो जायदाद की मालिक बन सकती है| उसे बेच सकती है या कारोबार कर सकती है| मेहेर (रकम, जायदाद या कोई भी चीज़) जो दूल्हा शादी के मोके पर अपनी दुल्हन को दे वो उसे अपने इस्तिमाल मैं ले सकती है, और वह उसके पति के नाम के बजाय वो अपने परिवार के नाम पर भी रह सकती है|
मर्द और औरत दोनों ऐसे कपडे पहने जो सादा और गरिमामय हों| कुछ मुस्लिम देशों मैं औरतो के रिवायती कपडे अक्सर उनके मुकामी अभिव्यक्ति को ज़ाहिर करता है|
रसूल अल्लाह (स) ने फ़रमाया:
“इमान वालों मैं सबसे बेहतरीन इमान उसका है जो के अपनी पत्नी के साथ बेहतरीन बर्ताव रखे और बहुत नरमी से पेश आये|”
क्या एक मुस्लिम एक से अधिक पत्नी हो सकती हैं?
धर्म इस्लाम सभी समाजों और हर दौर के लिए भेजा गया इसलिए इस में विभिन समाजी आवश्यकताओं की बहुत गुंजाइश है| कुरान के अनुसार हालात को मद्दे नज़र रखते हुए दूसरी पत्नी रखने रखने का हक हासिल है लेकिन इस शर्त पर के पति अपनी ज़िम्मेदारी अच्छी तरीके से निभाए|
क्या इस्लामी शादी ईसाई शादी की तरह होती है?
एक मुस्लिम विवाह एक ‘मुकद्दिस’ चीज़ नहीं है बलके एक सादा कानूनी समझोता है जिस मैं दोनों साथी आज़ाद हैं के वो इस समझोते की शर्ते शामिल करें| शादी की रिवायत एक से दुसरे देश विभिन्न है| जिस का नतीजा ये है के तलाक आम नहीं है हालांकि यह एक अंतिम उपाय के रूप में मना भी नहीं है| इस्लाम के अनुसार किसी मुस्लमान लड़की को उसकी मर्ज़ी के खिलाफ शादी करने के लिए ज़बरदस्ती नहीं की जा सकती| उसके माँ बाप सिर्फ उसे किसी जवान मर्द के बारे मैं राय दे सकते हैं जिसे वो मुनासिब समझते हों|
मुसलमान बुजुर्गों के साथ किस तरह का व्यवहार रखते हैं?
इस्लामी दुनिया मैं बूढों के लिए कोई अलग जगह नहीं है| अपने माँ बाप का उनकी ज़िन्दगी के उस मुश्किल समय मैं उनका ध्यान रखने के लिए तकलीफ उठाना एक सम्मान और वरदान मन जाता है और ये उनके लिए महान आध्यात्मिक विकास हासिल करने का बहुत बड़ा मोका होता है| खुदा कहता है के वो न सिर्फ अपने माँ बाप के लिए प्राथना करें बलके उनसे बहुत जादा नरमी से पेश आयें| याद रखें की जब हम बच्चे थे उन्होंने अपने से जादा तुम्हरा ख्याल किया| माँ को खास दर्जा हासिल है: रसूल अल्लाह (स) ने बताया के “स्वर्ग माँ के क़दमों के नीचे है|” जब वो बुढ़ापे को पहुँचते हैं, मुसलमान माता पिता के साथ दया और निस्वार्थता से पेश आया जाता है|
इस्लाम मैं नमाज़ के बाद माता पिता की खिदमत फ़र्ज़ है और ये उनका हक़ है की वो इसकी उम्मीद करें| जब बूढ़े लोग मुश्किल दौर से गुज़र रहे होते हैं तो हमें किसी तंगी का इज़हार करना बुरा समझा जाता है|
कुरान कहता है:
“तुम्हारे खुदा ने इरशाद फ़रमाया के अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करो और माँ बाप के साथ भलाई करते रहो| अगर उनमे से एक या दोनों तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहुँच जाएँ तो उनको उफ़ तक न कहना और न उन्हें झड़कना और उनके साथ बात अदब के साथ करना| और विनर्मता से उनके आगे झुके रहो और उनके हक मैं दुआ करो के ऐ खुदा जेसा उन्होंने मुझे बचपन मैं दया के साथ परवरिश की है तू भी उनके हाल पर रहमत फरमा|”
(क़ुरान 17:23-24)
मुसलमान मौत को कैसे देखते हैं?
यहूदी और इसायों की तरह मुसलमानों का इमान है के मोजूदा ज़िन्दगी सिर्फ परीक्षा की तय्यारी है आने वाली हमेशा की ज़िन्दगी की| मौत आस्था के मूल मैं ये चीज़े शामिल हैं: न्याय का दिन, दोबारा जीवित होना, नर्क और स्वर्ग| जब मुस्लमान मरता है तो आम तौर पर उसके खानदान के लोग उसको नहलाते हैं और एक साफ़ सफ़ेद चादर मैं उसको लपेटते हैं और फिर उसकी नमाज़ के बाद अधिमानतः उसी दिन दफनाया जाता है| मुस्लमान समझते हैं के ये किसी के आखरी खिदमत है जो वो कर सकते हैं अपने खानदान के साथ और एक मौका होता है के वोह उस ज़मीन पर अपनी मुख्तासिर मौजूदगी को याद करें| रसूल अल्लाह (स) ने बताया के किसी इंसान के पास ये तीन चीज़े होती हैं जो किसी शक्स की उसके मरने के बाद भी मदद कर सकती हैं, दान जो उसने किया हो, ज्ञान जो उसने सिखाया हो और नेक औलाद जो उसके लिए दुआ करे|
युध के बारे मैं इस्लाम क्या कहता है?
ईसाइयत की तरह इस्लाम भी अपने बचाओ मैं, धर्म के बचाओ मैं, या उनके हक मैं जो ज़बरदस्ती घरों से निकले गए हों लड़ने की इजाज़त देता है| ये लड़ाई के सख्त नियम देता है जिसमे आम जनता, फसलों, पेड़ों, और माल मवेशियों को नुक्सान पहुँचाने से मन करता है| अगर मुस्लमान इसे देखे तो, नाइंसाफी दुनिया पर हावी हो जाये अगर अच्छे लोग हक बात पर जानों का खतरा लेने के लिए तैयार न हों| कुरान कहता है:
“खुदा की राह मैं उनसे लड़ो मगर ज्यादती क्यूंकि खुदा ज्यादती करने वालों को दोस्त नही रखता|”
(कुरान 2:190)
“अगर ये सुलह करना चाहें तो तुम भी सुलह के लिए राज़ी हो जाओ और खुदा पर भरोसा रखो| कोई शक नहीं की वो सब कुछ सुनता और जानता है|”
(कुरान 8:61)
हालांके युध आखरी रास्ता है और जिसके लिए खुदा का कानून सख्त शर्तें लागू करता है| जिहाद के शब्दी मायने प्रयास के हैं और मुसलमानों का ईमान है के जिहाद दो किस्म का होता है| दूसरा जिहाद अन्दर के प्रयास हैं जो हर एक खुद अपनी अहंकारी इच्छाओं के खिलाफ अंदरूनी सुकून हासिल करने के लिए लड़ता है|
खाने का क्या?
हालांकि इस्लाम का खाने पीने का कानून यहूदियों और शुरू के इसाईओं से बहुत जादा सादा है, इस सिलसिले मैं कानून जिसकी मुस्लमान पेरवी करते हैं सूअर के मांस और किसी भी किस्म का नशे की चीज़ से मना करता है| रसूल अल्लाह (स) ने फ़रमाया है के आप के जिस्म का आप पर हक है, मुनासिब खाने का इस्तिमाल और सेहतमंद ज़िन्दगी मज़हबी ज़िम्मेदारी समझी जाती है|
पैगंबर ने कहा:
रसूल अल्लाह (स) ने कहा के: ‘खुदा से ईमान और खुश हाली मांगो, ईमान के बाद अगर कोई तोहफा है तो वो अच्छी सेहत से जादा अच्छा नहीं!’
कैसे इस्लाम मानव अधिकारों की गारंटी है?
अंतरात्मा की स्वतंत्रता कुरान स्वयं के द्वारा निर्धारित है : ‘ धर्म में कोई बाध्यता नहीं है’। (2: 256)
(कुरान 2:256)
इस्लाम की रियासत मैं सभी नागरिकों की संपत्ति पवित्र मानी जाती है चाहे वो लोग मुस्लमान हों या गैर मुस्लमान| मुसलमानों मैं नसलवाद की कोई जगह नहीं| मानव समानता के लिए कुरान इस तरह कहता है:
“लोगों! हमने तुमको एक मर्द और औरत से पैदा किया और तुम्हारी कौमें और कबीले बनाये ताके तुम एक दुसरे को पहचानों और खुदा के नज़दीक तुम मैं जादा इज्ज़तवाला वो है जो जादा परहेजगार है| बेशक खुदा सब कुछ जानने वाला और सबसे खबरदार है|”
(कुरान 49:13)
अमेरिका मैं इस्लाम|
ये तकरीबन मुमकिन है के सारे अमेरिकन मुसलमानों को आम शब्दों मैं बयां किया जा सके: धर्मान्तरित, आप्रवासियों, कारखाने के कर्मचारियों, डॉक्टरों; सभी अमेरिका के भविष्य के लिए अपने स्वयं के योगदान कर रहे हैं। ये जटिल समुदाय ईमान पर जमे हुए हैं जिन्होंने पूरे देश मैं हज़ारों मस्जिदों का जाल बिछाया है| मुस्लमान पहले उत्तरी अमेरिका मैं आये| १८ वीं सदी मैं हजारों की संख्या मैं मुस्लमान गुलाम के तौर पर वृक्षारोपण का काम करते थे| ये पहली कौमें अपने खानदान और रस्मो रिवाज से काट दिए गए थे| अनिवार्य रूप से समय के साथ साथ वो अपनी इस्लामी पहचान खो चुके थे| आज बहुत से अफ़्रीकी – अमेरिकी मुसलमान, मुस्लमान कौम मैं महतवपूर्ण भूमिका निभाते हैं|
हालांकि, १९ वीं सदी मैं अरब मुसलमानों की बाढ़ आती देखी गयी| जिनमें से ज्यादातर प्रमुख औद्योगिक केन्द्रों में बसे, उन्होंने किराये के कमरों मैं इबादत करीं| २० वीं सदी के शुरू मैं कई लाख मुस्लमान पूर्वी यूरोप से आये: पहले अल्बानियाई मस्जिद १९१५ ई मैं खोली गयी फिर उसके बाद जल्द ही और दूसरी एक पोलिश मुस्लिम ग्रुप ने एक मस्जिद १९२८ ई ब्रुकलिन मैं खोली|
१९४७ई वाशिंगटन इस्लामी मरकज़ राष्ट्रपति ट्रूमैन की अवधि के दौरान स्थापित किया गया था, और कई संगठन ५० के दशक मैं स्थापित हुईं| इसी दौरान देखा गया के दूसरी कौमों ने भी जो वहां स्थापित थीं उन्होंने इस्लाम की राह को अपनाया| हाल ही मैं अंग्रेजों के बहुत से समुदाय ने इस्लाम के दायरे मैं आकर मुस्लमान बनना कुबूल किया| आज अमेरिका मैं तकरीबन ५० लाख मुसलमान हैं|
मुस्लिम दुनिया|
दुनिया मैं मुसलमानों की आबादी तकरीबन एक बिलियन है| ३०% मुस्लमान सोवियत संघ, उप- सहारा अफ्रीका में 20%, दक्षिण पूर्व एशिया में 17% , अरब दुनिया में 18%, 10% रूस और चीन में रहते हैं| तुर्की, ईरान और अफगानिस्तान के गैर अरब मध्य पूर्व के 10 % शामिल है। हालांकि लगभग हर क्षेत्र में मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं, जिसमे लैटिन अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया, इनमे सबसे जादा आबादी रूस, भारत और मध्य अफ्रीका मैं है। संयुक्त राज्य अमेरिका में 5 लाख मुसलमान हैं।
“लोगों! हमने तुमको एक मर्द और औरत से पैदा किया और तुम्हारी कौमें और कबीले बनाये ताके तुम एक दुसरे को पहचानों और खुदा के नज़दीक तुम मैं जादा इज्ज़तवाला वो है जो जादा परहेजगार है| बेशक खुदा सब कुछ जानने वाला और सबसे खबरदार है|”
(कुरान 49:13)