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The Islamic Bulletin
The Purpose Of Life in Hindi
जिसका शुक्र आडया किया जाए|
अगर हम मे से हर एक को १०० डॉलर बाटू बिना
किसी वजह के सिर्फ़ यहाँ आने पर, आप मेरा कम से कम
धनियवाद करेंगे| तो आँखो के बारे मैं किया, आपके गुर्दे,
आपका दिमाग़, आपकी ज़िंदगी, आपकी साँस और आपके
बच्चो के बारे मैं क्या ख्याल है? इस बारे मैं आप क्या जानते
हैं? किसने दिए हैं ये आपको? क्या वो सरहाने या शुक्रिया
कहलाने के हक़दार नही हैं? क्या वो आपसे अपनी इबादत
करवाने और अपने आपको मनवाने का हक़दार नही हैं? मेरे
भाइयो और बहनो दूसरे लफ़ज़ो मई ये है मकसद और हासिल
ज़िंदगी का|
अल्लाह ता आला क़ुरान पाक मे फरमाता है:
“मैने जिन्नात और इंसानो को सिर्फ़ इसलिए पैदा किया
है के वो सिर्फ़ मेरी इबादत करें”
(क़ुरान सुरा ५१, आयात
५६)
ये है जो कहा अल्लाह ता आला ने| तो हमारी ज़िंदगी
का मकसद है के हम अपने बनाने वाले को पहचाने और
उसके एहसान मंद हों| खालिक़ की इबादत करें| हम अपने
आप को उसके सामने झुका लें| और उसके क़ानूनो पर चलें
जो उसने दिए हैं| कम शब्दो मैं इसका मतलब इबादत है|
ये हमारी ज़िंदगी का मकसद है| और इस इबादत को करने
के लिए हम किया करेंगे, खाएँगे, पिएँगे, कपड़े पहनेंगे, काम
करेंगे, मज़े उड़ाएंगे अपनी ज़िंदगी और मौत के बीच| ये सब
तो लाज़मी है ही| हमको पैदा किया गया है इबादत के लिए|
ये हमारी ज़िंदगी का मकसद होना चाहये| मेरा ईमान है के
कोई भी जो के विज्ञान या तजज़ियती इल्म रखने वाला इस
मक्सद से मुतताफ़ीक़ होगा| लोगों के हो सकता है और दूसरे
मकसद भी हों लेकिन कुछ है जो उनके और खुदा के दरमियाँ
चल रहा है|
अब हम मोज़ू के दूसरे हिस्से की तरफ आते हैं|आप
इस्लाम के बारें मैं क्या जानते हैं? नही, क्या आपने इस्लाम
के बारे मैं सुना है? नही, क्या आपने देखा है मुसलमानो को
अमल करते हुए? क्यूंके इस्लाम और मुसलमानो मैं बढ़ा
फ़र्क़ है| इसको यूँ समझे के जिस तरह एक बाप और एक
आदमी| एक आदमी जिसके बच्चे हों| वो है एक बाप, लेकिन
बाप होने की हेसियत से उसकी ज़िम्मेदारियाँ हैं| अगर एक
आदमी अपनी ज़िम्मेदारियूं को पूरा नही करता है तो ये
लाज़मी नही है के वो अच्छा बाप नही है| इस्लाम एक हुक्म
और क़ानून है| अगर एक मुसलमान इस हुक्म की पाबंदी
नही करता और क़ानून पर अमल नही करता तो वो अच्छा
मुसलमान नही है लिहाज़ा इस्लाम को मुसालमोनो के
लिहाज़ से नही देखें|
हमने इस्लाम और मुसलमानो जेसे शब्द सुने हैं
और हम अपने स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटीओ के
निसाब की किताबों मैं इस्लाम के बारे मैं पढ़ते हैं हमने बहुत
सी ग़लत, गुमराह करने वाली बातें और जानते बूझते झूती
खबरें जोकि पहलाई गयीं, मीडीया के ज़रिए सुनी और देखीं|
और मैं इस बात को मानता हूँ के कुछ इस तरह के ग़लत
मालोमात और ग़लत बयानी हमेशा खुद मुसलमान भी करते
हैं इस के बावजूद इस दून्निया मैं पाँच अरब मुसलमान हैं हर
पाँच लोगों मैं से एक मुसलमान है| ये रिसर्च है आप इसकी
तस्दीक़ एन्साइक्लोपीडिया या दूसरे ज़रिए जिससे भी
आप चाहें कर सकते हैं ये केसे हो सकता है के इस दुनिया
मैं हर पाँच मैं से एक शक़स मुसलमान हो और हम कहें के
इस्लाम की हक़ीकत के बारे मैं हम कुछ नही जानते? अगर
मैं आपसे कहूँ के दुनिया मैं हर पाँच मैं से एक शक़स चीनी
था, जोकि हक़ीकत है| एक अरब चीनी दुनिया मैं हैं| हर
पाँच लोगों मैं एक चीनी है तो आप जानते हैं चीनी और चीनी
लोगों के जियोग्रफी, सोसाइटी, राजनीति, फिलॉसोफी और
हिस्टरी को| तो केसे हम इस्लाम के बारे मैं नही जानते?
क्या है ये ताल्लुक़ जो जोड़ता है अलग अलग कोमों
और इस कयनात की टरतीब को एक बिरादरी मैं? जो मेरे
बहिन, भाई यमन मैं बनता है जबके मेरा ताल्लुक़ अमेरिका
से है और जो मुझे भाई बनाते हैं मेरे भाई बहिन ऑस्ट्रेलिया
से हैं और एक दूसरा भाई इंडोनशिया मैं है| और भाई
आफ्रिका से और दूसरा एक भाई थाइलॅंड से और इटली से,
ग्रीस, पोलॅंड, ऑस्ट्रीया, कोलंबो, बोलोविया, कॉस्टा रीका,
चाइना, स्पेन से, रूस से और बहुत से| क्या है जिसने इनको
मेरी बहिन और मेरा भाई बनाया? हम मुख़्टालीफ़ तहज़ीबो
और नफ्सीयती पसमंज़र से ताल्लुक रखते हैं! क्या है
इस्लाम मैं जो हमे खुद बा खुद क़ुबूल करता है? और हमें
भाईचारे मैं जोड़ देता है? असल वजह क्या ज़िंदगी के बारे मैं
ग़लत फहमी की जो के लोगों मैं बढ़ी तादाद मैं हैं
मैं कोशिश करूँगा के कुछ हक़ीक़तें आपके सामने
रख सकूँ लेकिन इसके साथ, जेसे मैने पहले कहा की ये
ज़रूरी है के आप खुला ज़हेन और खुला दिल रखें क्यूंकी
अगर मैं ग्लास को उल्टा रखकर इस पर पानी उंड़ेलू तो
मैं कभी भी ग्लास मैं पानी हासिल नही कर सकता इसको
सीधा करना पड़ेगा सिर्फ़ हक़ीक़तों से ही बात समझमें नही
आती है इसके साथ बर्दाश्त होसला सरहाने का जज़्बा
और सच्चाई को क़ुबूल करने की ज़रूरत होती है जब भी
आप सुनें|
शब्द ‘इस्लाम’ का अर्थ है मगलूग होना (गुलाम),
तसल्लूम मैं सर झुका लेना, फर्मा बरदारी करना| आप इसे
इल्हा कह सकते हैं, खालिक़ कह सकते हैं, अज़ीम खुदा
कह सकते हैं, अज़ीम ताक़त कह सकते हैं और ऐसे जीतने
अच्छे नाम हैं सब इसके हैं|
मुसलमान खुदा के लिए अरबी शब्द इल्हा
इस्तीमाल करते हैं क्यूंके अरबी मैं इसके कोई दूसरे मतलब
नही हैं| शब्द इल्हा किसी भी मखलूक़ पर नही रख सकते
अलबत्ता अज़ीम जेसे दूसरे अल्फ़ाज़ लोग मखलूक़ के लिए
इस्तीमाल करते हैं| मिसाल के लिए जेसे “सबसे बढ़ा डॉलर”,
“मैं अपनी बीवी को बहुत प्यार करता हूँ”, या वो अज़ीम हैं|