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The Islamic Bulletin

The Purpose Of Life in Hindi

नही नही नही नही लेकिन शब्द इल्हा एक पर ही लागू होता

है जिसने सबको पैदा किया जिनका हम पहले ज़िक्र कर चुके

हैं| यहाँ से हम शब्द इल्हा के इस्तीमाल की तरफ जातें हैं

और आप जानते के हम किसके बारे मैं बात कर रहें हैं|

शब्द इस्लाम लिया गया है ‘सलामह’ की जड़ से

जिसका मतलब है अमन| एक मुसलमान एक शक़स है जो के

मगलूग होता है, तसलीम करता है और फर्मा बरदारी करता

है अज़ीम खुदा के क़ानून की और उसे उन तस्लीमत से अमन

और सुकून हासिल होता है| हम जल्द देख सकेंगे इस तशरी

से के अरबी शब्द ‘इस्लाम’ हमें बताता है वही तरीका और

इख्लाक़, जो बताया था माशहूर और क़ाबिल एह्त्राम इल्हा

के रासूलों और पेगंबरों ने| इन मैं आदम, नूः, दाऊद, सुलेमान,

इसहाक़, इस्माईल, युसुफ, यहयाः, मरयम के बेटे ईसा और

मोहम्मद स:| ये तमाम रसूल और पैग़ंबर एक ही इलाह की

तरफ से भेजे गये और एक ही पैगाम लेकर आए इन सब के

बात करने का एक ही अंदाज़ था और ये कहते थे बस एक

चीज़| इलाह की फार्मबरदारी करो! अज़ीम इलाह की इबादत

करो, ज़िंदगी का मकसद पूरा करो और अच्छे काम करो

तो आपको उसका बदला दूसरी ज़िंदगी मैं मिलेगा| ये तमाम

कहते थे की इस से आगे कुछ नही करना इससे बजाए की

उनकी ज़ुबान किया थी और किस वक़्त के थे और किसने

उन्हे भेजा, वो सब कहते यही थे|

अगर आप पन्ने थोड़ा ख्याल से बिना अपनी सोच

को या किसी दूसरे के किए गये इज़ाफ़े को या झूट को शामिल

किए पढ़ें तो आप पाएँगे के ये एक सादा पेगाम था तमाम

पेगंबर का जिस एक से दूसरे ने ताज़दीक की इन पेगम्बरो

मैं से कोई भी आएसा नही था की जिसने कभी कहा हो के मैं

खुदा हूँ मेरी इबादत करो| आप अपनी पाक किताबें देखलें

आप किसी किताब मैं नही पायंगे ना तो इंजील मैं, ना तोरा

मैं, ना अहेद्नामे मैं, ना ज़ुबूर मैं, आप किसी किताब मैं नही

पायंगे| आप किसी पेगंबर की तक़रीर मैं नही पायंगे, आप घर

जाएँ रात मैं और इंजील के तमाम पन्ने पलट के देखें और मैं

ज़िम्मेदारी लेता हूँ के आप कहीं नही पायंगे| कहीं भी! तो ये

कहाँ से आया? ये है जिसकी आपको तहकीक करनी पड़ेग|

इस वजाहत से आसानी से हम देख सकते हैं के अरबी

शब्द जो हमे बताता है वो पेगम्बरो ने करके दिखाया| वो

तमाम आए और खुद को अल्लाह के सामने पेश कर दिया|

अल्लाह का गलबा खुद पर चड़ा लिया, लोगों को अल्लाह की

तरफ बुलाया, लोगों को कहते रहे और इसरार करते रहे के

नेक काम करें| मूसा के दस एहकामात, वो क्या थे? इब्राहिम

की तक़रीर, वो क्या थी? दाऊद की ज़ुबूर वो क्या थी?

सुलेमान की मिसालें, क्या कहा था उन्होनें? ईसा की गॉस्पेल,

उन्होने क्या कहा? यहयाः ने क्या कहा था? इशाक़ ने क्या

किया और इस्माईल ने क्या कहा? मोहम्मद स: ने क्या

कहा? इससे ज़ादा कुछ नही!

“उन्हे इसके सिवा कोई हुकुम नही दिया गया के सिर्फ़

अल्लाह की इबादत करें उसके लिए दीं को खालिस रखें|

इब्राहिम हनीफ़ के दीन पर और नमाज़ को कायम रखें

और ज़कात देते रहें, यही है दीन सीधी मिल्लत का”

(क़ुरान सुरा ९८, आयात ५)

अल्लाह ताआला फरमाते हैं के “वो कोई हुकुम नही

देते सिवाए इसके के अल्लाह की इबादत की जाए, सिर्फ़

उसके बनके रहो और यही सीधा रास्ता है| ये असल पेगाम

था| इसी तरह ये बेहतर होगा के हम समझे रासूलों और

पेगम्बरो को मुसलमानो की तरह| क्यूंकी एक मुसलमान

क्या है? अरबी इस्तलहात को छोड़े, ये भी ना सोचें की हम

क्या कह रहें हैं” मक्के के बारे मैं या साओदी अरब या

मिस्र के बारे मैं ना सोचें! नही! सोचें शब्द मुसलमान का

क्या मतलब है| “जो अज़ीम अल्लाह के सुपुर्द कर्दे और

अज़ीम अल्लाह के क़ानूनो पर अमल करता रहे”, इसमे चाहे

सुपुर्दगी कुद्रती हो या मादी तोर पर| हर तरह से अल्लाह

के क़ानूनो के आगे सर झुकाए वो मुस्लिम है|

तो जब एक बचा अपनी माकी कोक से बाहर आता

तो उस वक़्त अल्लाह का हुक्म होता, वो क्या है? वो एक

मुसलमान है जब सूरज अपने दायरे के अंदर घूमता है तो वो

क्या है? एक मुसलमान है! कशिश शकल का क़ानून वो क्या

है? वो एक मुसलमान है! हर वो चीज़ जो खुद को अज़ीम खुदा

के सुपुर्द करती है वो मुसलमान है! लिहाज़ा जब हम अपनी

मर्ज़ी से अज़ीम खुदा की फर्माबरदारी करते हैं तो हम

मुसलमान हैं! ईसा मसीह एक मुसलमान थे| उनकी मेहेरबान

मांं मुसलमान थी| इब्राहिम मुसलमान थे, मूसा एक मुसलमान

थे| तमाम पेगंबर मुसलमान थे! लेकिन वो अपने लोगों मैं आए

और वो मुख्तलिफ ज़ुबान बोलते थे| हज़रत मोहम्मद स

अरबी ज़ुबान बोलते थे| तो अरबी ज़ुबान मैं जो शक़स खुद

को सुपुर्द कर दे और पेश कर्दे वो मुसलमान है|अल्लाह

ताआला का हर रसूल और पेगम्बर बिल्कुल एक जेसा लेकर

आए और ये बुनियादी पेगाम है के “अज़ीम खुदा की इबादत