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The Islamic Bulletin

The Purpose Of Life in Hindi

था? वो एक अज़ीम खुदा की खिदमत करने वेल थे, तो हमें

भी चाहये की हम भी बस अज़ीम खुदा के खिदमत गुज़ार बन

जाएँ|

आखरी साहित्य और खुदा की वाणी की हेसियत से,

क़ुरान मैं बहुत सॉफ और थोड़ा बयान किया गया है, ‘आज मैने

तुम्हारे लिए दीन को पूरा कर दिया और तुम पर अपना इनाम

भरपूर कर दिया और तुम्हारे लिए इस्लाम के दीन होने पर

रज़ामंद हो गया’ [क़ुरान सुरा ५, आयात ३] तो क़ुरान के ज़रिए

शब्द ‘सलाम’ आया क्यूंके जब इमारत मुकम्मल होती है तो

आप उसको एक घर कहतें हैं| जब एक कार बनने की तय्यरी

मैं होतो आप उसे गाढ़ी नही कह सकते क्यूंके वो अपने बनने

के दौर से गुज़र रही है| जब वो पूरी बन जाती है, उसको नाम

देदिया जाता है, उसको गाढ़ी को चला कर देखा जाता है, तब

ये गाढ़ी पूरी होती है| जब इस्लाम मुकम्मल हुआ था जेसे

वाणी पूरी हुई, जेसे एक किताब पूरी हुई, जेसे मुहम्मद स की

ज़िंदगी जो नमूना थी पूरी हुई फिर ये इस्लाम बना| ये एक पूरी

ज़िंदगी का रास्ता हुआ|

तो ये शब्द है जो के नया था लेकिन ये अमल मैं नही

था| ना तो रसूल, खुदा का हुक्म नही था, ना एक नया खुदा,

ना ही नयी वाणी, लेकिन सिर्फ़ एक नाम, इस्लाम और जेसे

मैने पहले कहा था तमाम पेगंबर कौन थे? वो सब मुसलमान

थे| एक और बात मोहम्मद स के बारे मैं अपने ज़ह्नों मैं रखें

जो के इनको नुमाया करती है के पिछले तमाम रासूलों की

तरह वो सिर्फ़ अरब के लिए नही आए थे या सिर्फ़ अपने

लोगों के लिए नही| बहराल इस्लाम अरब का एक मज़हब

नही है बलके अब्दुल्लाह के बेटे पेगमबरे इस्लाम मोहम्मद

स मक्का मैं पैदा हुए जो के अरब नाम के जज़ीरा है और वो

पैदाइशी अरबी थे| वो इस्लाम सिर्फ़ अरबीयूं के लिए नही

लाए थे लेकिन सारे इंसानों के लिए लाए थे|

हालांकें क़ुरान अरबी ज़ुबान मैं उतारा गया है, जो इस

हक़ को या दावे को खारिज करता है की मोहम्मद स का

पैगाम अरबियों तक मह्दूद था या सिर्फ़ अरबियों के लिए था|

क़ुरान मजीद मैं अल्लाह ताआला फरमाते हैं के

“और हमने आपको तमाम जहाँ वालों के लिए रहमत बना

कर भेजा है”

[क़ुरान सुरा: २१ आयात:१०७]

लिहाज़ा मोहम्मद स आखरी रासूल हैं और सारे रासूलों और

पेगंबरों के ताज हैं, बहुत से लोगों को ये मालूम नहीं है|

और जब से मैं अपनी इस प्रेज़ेंटेशन की मदद के लिए क़ुरान

पाक के हवाले दे रहा हूँ, अब मैं आपको खुद क़ुरान के

पसमंज़र के बारे मैं बताओंगा| पहले बात तो ये क़ुरान दावा

करता है के ये मजमुआ है अल्लाह की तरफ से भेजी गयी

वाणी का| इस का मतलब है के क़ुरान अज़ीम खुदा की तरफ

से मोहम्मद स पर वाणी के माध्यम से उतारा गया|

अल्लाह ताआला फरमाते हैं के

“और ना वो अपनी इच्छा से अपनी बात कहते हैं| वो तो

सिर्फ़ वाणी है जो उतारी जाती है”

[क़ुरान सुरा ५३, आयात

३-४]

मोहम्मद स खुद भी ना कुछ कहते हैं, उनके

ख्यालात, उनकी इच्छा या उनके जज़्बात और एहसास भी

उनके अपने नही हैं| लेकिन वो एक वाणी है जो के उनपर

ज़ाहिर होती है! यही अल्लाह ताआला क़ुरान पाक मैं फरमाते

हैं| लिहाज़ा मैं अगर आपको क़ुरान की ताज़ादीक करने के

लिए कायल करू, जो के मैं ज़रूर करूँगा| पहली बात ये है के

नामुमकिन है के मोहम्मद स खुद से इस तरह की कोई

किताब बना सकें| दूसरा ये के मैं साबित करूँगा के इसी तरह

की किसी इंसानो की जमात के लिए भी ये मुमकिन नही था के

वो इसको बना सकते| चलिए हम ज़रा इस बारे मैं सोचते हैं|

क़ुरान पाक मैं बयान है के,

“और हमने इंसानों को पैदा किया कतरे से जो के रहम

की दीवारों से जाम जाता है”

[क़ुरान सुरा २३, आयात १४]

“जिसने इंसान को खून के लोतड़े से पैदा किया”

[सुरा ९६,

आयात २]

केसे मोहम्मद स ने जाना के लोथड़ा एक कतरे से

बनता है और माँ के रहम की दीवारों से चिपक जाता है? क्या

उनके पास टेलिस्कोप थी? क्या उनके पास साइन्स स्कोप

थी? क्या उनके पास कोई आएसी चीज़ थी जो एक्स रे की

तरह काम करती थी? क्या उन्होने इस बारे मैं कहीं से ज्ञान

हासिल किया था, जो के अभी ४७ साल पहले खोजा गया है?

इसी तरह वो केसे जानते थे के समुंद्रओ के बीच मैं